श्रेष्ठाचार सभा
भारत दुनिया के कुछ बेहतरीन सांस्कृतिक धरोहरों का घर है। इस सांस्कृतिक मूल्य को पीढ़ी दर पीढ़ी हम तक पहुंचाते रहे हैं।
हालां की विदेशी शक्तियों के प्रभाव के कारण कुछ परम्पराएं और इसकी मूल्यवान भूमिकाएं कुछ हद तक समकालीन समाज में कम हो गयी हैं।
प्राचीनकाल में हमारे परिवारों में जप या साधना की परंपरा थी। यह सिर्फ साधुओं द्वारा ही नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता था। दूसे शब्दों में इसका नेतृत्व खुद घरवाले ही करते थे। हमारे पूर्वजों ने साधना और जप के कारण शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत किया।
लेकिन जाहिर तौर पर हमारे पास एक ऐसी स्थति हैं जहाँ हम कई प्रकार के जप या साधना संस्कृति खो रहे हैं। हमारे विश्वासों के अनुसार हर परिवार में एक कुल देवता ( पारिवारिक देवी) को मन जाता हैं। केरल के ९५% परिवारों में ये कुल देवता भद्रा काली का रूप धारण करती हैं। माना जाता हैं की कुल देवता पूरे परिवार के सदस्यों को कठिनाइयों और चुनौतियों से बचाती हैं। लेकिन अब हम में से बहुत से लोग अपनी पुश्तैनी देवी के बारे में नहीं जानते हैं। जो लोग जानते हैं उनमे से बहुत से लोग ये नहीं जानते की हमारी कुल देवता की पूजा कैसे और क्यों की जाती हैं।
हर परिवार में सदस्यों के स्वस्थ्य और समग्र लाभ के लिए गणपति होम और भगवती सेवा की जाती थी। ये परिवार के मुखिया द्वारा किया जाता था ना की कोई बाहर का अन्य व्यक्ति द्वारा।
लेकिन समय के साथ पश्चिमी विचारों के प्रभाव के कारण हमने इस सम्प्रदाय और ज्ञान को खो दिया हैं। अब अपने घरों में पूजा और अन्य अनुष्ठान करने के लिए हमें बाहर से लोगों को बुलाना पद रहा हैं। इस प्रकार हमने अपनी मूल्य संस्कृति को अपने हाथो से बहार जाने दिया।
श्रेष्ठाचार सभा का उद्देश्य हमारे सांप्रदायिक मूल्यों को फिर से सजीव कर हमारे समुदाय को सही रास्ते पर लाना हैं।
साधना
साधना और साधना अभ्यासी में दो बहुत मूल्यवान चीजें हैं। साधना क्या है? अभ्यासी कौन है? यही सही समझ है ।।
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